Thursday, April 10, 2008

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुँएं में उड़ाता चला गया

बरबादियों का सोग़ मनाना फ़िज़ूल था -3
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया
मैं ज़िंदगी...

जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया -3
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया
मैं ज़िंदगी...

ग़म और खुशी में फ़र्क न महसूस हो जहाँ -3
मैं दिल को उस मुक़ाम पे लाता चला गया
मैं ज़िंदगी...

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http://66.45.233.14/MainZindagiKaSaathNibhata.mp3

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