Monday, March 8, 2010

हो लाल मेरी पत रखियो

ओ हो
हो हो हो
हो लाल मेरी पत रखियो बला झूले लालण
ओ लाल मेरी पत रखियो बला झूले लालण
सिंदड़ी दा सेवण दा
सखी शाह बाज़ कलन्दर
दमादम मस्त कलन्दर
अली दम दम दे अन्दर
दमादम मस्त कलन्दर
अली दा पैला न.म्बर
हो लाल मेरी -२

चार चराग़ तेरे बरण हमेशा -३
पंजवा मैं बारण आई बला झूले लालण
हो पंजवा मैं
पंजवा मैं बारण आई बला झूले लालण

सिंदड़ी दा सेवण दा
सखी शाह बाज़ कलन्दर
दमादम मस्त कलन्दर
अली दम दम दे अन्दर
दमादम मस्त कलन्दर
अली दा पैला न.म्बर
हो लाल मेरी -२

हिंद सिंद पीरा तेरी नौबत बाजे -३
नाल बजे घड़ियाल बला झूले लालण
हो नाल बजे
नाल बजे घड़ियाल बला झूले लालण

सिंदड़ी दा सेवण दा
सखी शाह बाज़ कलन्दर
दमादम मस्त कलन्दर
अली दम दम दे अन्दर
दमादम मस्त कलन्दर
अली दा पैला न.म्बर
हो लाल मेरी -२

ओ हो
हर दम पीरा तेरी ख़ैर होवे -३
नाम-ए-अली बेड़ा पार लगा झूले लालण
हो नाम-ए-अली
नाम-ए-अली बेड़ा पार लगा झूले लालण

सिंदड़ी दा सेवण दा
सखी शाह बाज़ कलन्दर
दमादम मस्त कलन्दर
अली दम दम दे अन्दर
दमादम मस्त कलन्दर
अली दा पैला न.म्बर
हो लाल मेरी -२

हो लाल मेरी पत रखियो बला झूले लालण
सिंदड़ी दा सेवण दा
सखी शाह बाज़ कलन्दर
दमादम मस्त कलन्दर

अली दम दम दे अन्दर
दमादम मस्त कलन्दर
अली दा पैला न.म्बर

Tuesday, August 18, 2009

अजीब दास्ताँ हैं ये, कहाँ शुरू कहाँ ख़तम

फ़िल्म - दिल अपना और प्रीत पराई - 1960
गायिका - लता मंगेशकर
संगीत - शंकर-जयकिशन
गीत - शैलेन्द्र

अजीब दास्तां है ये
कहाँ शुरू कहाँ खतम
ये मंज़िलें है कौन सी
न वो समझ सके न हम
अजीब दास्तां...

ये रोशनी के साथ क्यों
धुआँ उठा चिराग से -२
ये ख़्वाब देखती हूँ मैं
के जग पड़ी हूँ ख़्वाब से
अजीब दास्तां...

किसीका प्यार लेके तुम
नया जहाँ बसाओगे -२
ये शाम जब भी आएगी
तुम हमको याद आओगे
अजीब दास्तां...

मुबारकें तुम्हें के तुम
किसीके नूर हो गए -२
किसीके इतने पास हो
के सबसे दूर हो गए
अजीब दास्तां...
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Wednesday, June 10, 2009

मेरे साजन हैं उस पार

गीतकार :शैलेन्द्र
गायक :एस डी बर्मन
संगीतकार: एस डी बर्मन
चित्रपट :बंदिनी - 1963

ओ रे माझी ओ रे माझी ओ ओ मेरे माझी
मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूँ इस पार
ओ मेरे माझी, अबकी बार, ले चल पार, ले चल पार
मेरे साजन हैं उस पार...

हो मन की किताब से तू, मेरा नाम ही मिटा देना
गुन तो न था कोई भी, अवगुन मेरे भुला देना
मुझको तेरी बिदा का...
मुझको तेरी बिदा का मर के भी रहता इंतज़ार
मेरे साजन...

मत खेल जल जाएगी, कहती है आग मेरे मन की
मत खेल...
मत खेल जल जाएगी, कहती है आग मेरे मन की
मैं बंदिनी पिया की चिर संगिनी हूँ साजन की
मेरा खींचती है आँचल...
मेरा खींचती है आँचल मन मीत तेरी हर पुकार
मेरे साजन हैं उस पार
ओ रे माझी ओ रे माझी ओ ओ मेरे माझी
मेरे साजन हैं उस पार...

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ओह रे ताल मिले नदी के जल में


गीतकार :इंदीवर
गायक :मुकेश
संगीतकार: रोशन
चित्रपट :अनोखी रात - 1968

ओह रे ताल मिले नदी के जल में
नदी मिले सागर में
सागर मिले कौन से जल में
कोई जाने ना
ओह रे ताल मिले नदी के जल में ...

अन्जाने होंठों पर ये (पहचाने गीत हैं - २)
कल तक जो बेगाने थे जनमों के मीत हैं
ओ मितवा रे ए ए ए कल तक ...
क्या होगा कौन से पल में
कोई जाने ना
ओह रे ताल मिले नदी के जल में ...

सूरज को धरती तरसे (धरती को चंद्रमा - २)
पानी में सीप जैसे प्यासी हर आतमा
ओ मितवा रे ए ए ए ए पानी में ...
बूंद छुपी किस बादल में
कोई जाने ना
ओह रे ताल मिले नदी के जल में ...

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Wednesday, August 20, 2008

लो आ गयी उनकी याद

गीतकार :शकिल बदायुनी, गायक :लता मंगेशकर,

संगीतकार :रवी, चित्रपट :दो बदन - 1966


लो आ गयी उनकी याद्, वो नहीं आए


दिल उनको ढूंढता है, गम का सिंगार कर के
आंखे भी रक गयी है, अब इंतजार कर के
एक आस रह गयी है, वो भी ना टूट जाए


रोती हैं आज हम पर, तनहाईयां हमारी
वो भी ना पाए शायद्, परछाईयां हमारी
बढते ही जा रहे है, मायूसीयों के साये



लौ थरथरा रही है, अब शम-ए-जिंद्गी की
उजडी हुयी मोहब्बत, मेहमां हैं दो घडी के
मर कर ही अब मिलेंगे, जी कर तो मिल ना


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Monday, July 21, 2008

चाँदी की दीवार न तोड़ी

फ़िल्म: विश्वाश -1969 , गायक: मुकेश , संगीत निर्देशक: कल्याण जी, आनन्द जी , संगीतकार: गुलशन बावरा

चाँदी की दीवार न तोड़ी, प्यार भरा दिल तोड़ दिया
इक धनवान की बेटी ने, निर्धन का दामन तोड़ दिया
चाँदी की ...

कल तक जिसने क़समें खाईं, दुख में साथ निभाने की
आज वो अपने सुख की खातिर, हो गई इक बेगाने की
शहनाइयों की गूंज में दबके, रह गई आह दीवाने की
धनवानों ने दीवाने का, ग़म से रिश्ता जोड़ दिया
इक धनवान की बेटी ने, निर्धन का दामन तोड़ दिया
चाँदी की ...

ये क्या समझे प्यार को जिनका, सब कुछ चाँदी सोना है
धनवानों की इस दुनिया में, दिल तो एक खिलौना है
सदियों से दिल टूटता आया, दिल का बस ये रोना है
जब तक चाहा दिल से खेला, और जब चाहा तोड़ दिया
इक धनवान की बेटी ने, निर्धन का दामन तोड़ दिया
चाँदी की ...

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Tuesday, May 27, 2008

कल चमन था आज इक सहरा हुआ


गीतकार: राजेन्द्र कृष्ण, गायक: मो. रफ़ी, संगीतकार: रवि
फिल्म: खानदान - 1965

मुझे जब जब बहारों का ज़माना याद आएगा
कहीं अपना भी था इक आशियाना याद आएगा
कल चमन था आज इक सहरा हुआ
देखते ही देखते ये क्या हुआ
कल चमन था ...

मुझको बरबादी का कोई ग़म नहीं -२
ग़म है बरबादी का क्यों चर्चा हुआ
कल चमन था ...

एक छोटा सा था मेरा आशियाँ -२
आज तिनके से अलग तिनका हुआ
कल चमन था ...

सोचता हूँ अपने घर को देखकर -२
हो न हो ये है मेरा देखा हुआ
कल चमन था ...

देखने वालों ने देखा है धुआँ -२
किसने देखा दिल मेरा जलता हुआ
कल चमन था ...

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